दुर्गा चालीसा

शक्ति, करुणा और मातृत्व की प्रतिमूर्ति माँ दुर्गा के चमत्कारी स्वरूप पर केंद्रित ‘दुर्गा चालीसा’ एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है, जो भक्त के अंतःकरण में नवचेतना, निर्भयता और श्रद्धा की ज्योति प्रज्वलित करता है। यह चालीसा न केवल माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की महिमा का संक्षिप्त सार प्रस्तुत करता है, अपितु भक्त को शक्ति-साधना की ओर प्रेरित करता है। इस चालीसा के प्रत्येक चौपाई में माँ दुर्गा के अद्भुत पराक्रम, असुर-विनाशक रूप और भक्तवत्सलता का अत्यंत मार्मिक व भावप्रवण वर्णन किया गया है। "जपे जो चालीसा निर्मल मन लाई, ताहि संकट नहिं कबहुँ सताई" — इस वाक्य के माध्यम से यह चालीसा भक्त को आश्वस्त करती है कि माँ की स्तुति करने वाला साधक कभी भय, रोग, संकट या दैविक पीड़ा से पीड़ित नहीं होता। शास्त्रीय प्रमाणों, पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों की वाणी के आलोक में रची गई यह दुर्गा चालीसा, नवरात्रि जैसे पावन पर्वों पर विशेष फलदायी होती है। यह ग्रंथ साधना, आराधना और भक्ति का एक सहज सेतु है, जिसके माध्यम से साधक अपने जीवन में दिव्यता, शौर्य, समृद्धि और आत्मबल का अनुभव कर सकता है। माँ दुर्गा की यह स्तुति, पाठक को भाव-विभोर कर उसके हृदय में माँ के प्रति अटूट श्रद्धा, अपरिमित प्रेम और पूर्ण समर्पण का संचार करती है। यह ग्रंथ प्रत्येक गृहस्थ, साधक और श्रद्धालु के लिए पूजनीय एवं संग्रहणीय है।